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Tuesday, April 22, 2014

मुझे अपनी खबर नहीं

मुझे अपनी खबर नहीं 
लेकिन 
उसकी हर शै का इल्म है 
मैं लाख अश्कों के घूँट पी जाऊं 
मगर उसके रूखे अनवर पे 
आई शिकन का बखूबी अहसास है 

मेरे ख्वाब, मेरी तमन्नाएँ, मेरा वजूद 
शक्ले किर्चियों में बिखर के रह गयीं 
समेटूं भी तो क्या समेटूं .......

या अल्लाह !
उसके ख्वाब, उसके तमन्नाएँ,उसके वजूद
ज़िन्दा रख 
उसकी तवील ज़िन्दगी को
खुशियों का आफताब बख्श दे !!

मैं तीरगी में रहूँ तो रहने दे 
उसकी ज़िन्दगी शुआओं से लबरेज कर दे ..

बारगाहे इलाही में उट्ठे हुए हाथ 
बस यही मांगते हैं 
जो उसके जबीं का हो 
वो उसे अता  कर दे 
 मेरे हिस्से का जबीं भी 
उसके नाम कर दे 

चाहे तो मुझे जाया कर दे 
और हो सके तो सफरे धूप में
मुझे उसका साया कर  दे 

या अल्लाह ! 
इसे तमन्नाएँ कह, 
या ख्वाबों की ताबीर समझ 
बस यही अलफ़ाज़ 
मेरी जबां पे रवां कर दे !!!

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
17th Nov.12, '267'

Dedicated to Sanjiv for your Mahboob By - Shahid 'Ajnabi'




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