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Wednesday, April 16, 2014

काश कोई यहाँ अपना हमनशीं होता

काश कोई यहाँ अपना हमनशीं होता
जिसे मैं अपना हाले दिल सुना देता

गर सामने उसके मैं झूठा ही रूठता
आसुंओं से अपने मेरी नाराजगी मिटा देता

हर इक पल भारी कट रहा है 'अजनबी'
वो रास्ते, वो गलियां, वो खलिश मिटा देता

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
22nd May. 01, '218'

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