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Wednesday, April 16, 2014

इश्क़ की गलियां हो गयीं अब बदनाम

इश्क़ की गलियां हो गयीं अब बदनाम 
कोई किसी का न करे एतबार न करे इल्जाम 

हर पल वो शख्स मुहब्बत का दम भरता था 
आज प्यार के हर दरीचे से हुआ है बदनाम 

खुद को कहता था उगता सूरज वो, दोस्तो
शायद उसे मालूम न था आती भी है शाम 

न रही वो महफिलें, वो साक़ी, न ही वो रिंद 
बेमजे हो गये वो सारे साक़ी के जाम 

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'  
27th July 05, '230'

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