"साहित्य " इस शब्द को आँखों से देखते ही मन में कुछ होता है। कल्पनाएँ जाग जाती हैं। मन प्रकृति में खो जाता है और दिल में खुशी और गम दोनों के मंजर पैदा हो जाते हैं। होठों पर कभी हँसी आती है तो कभी मलाल । पर जब होठों पर हँसी आती है तो होंठ थिरकने लगते हैं , कुछ कहना चाहते हैं लेकिन ....... और जब होठों पर मलाल का मौसम छाता है तो होंठ बिल्कुल रुके हुए , न यहाँ , न वहां , कहीं भी हिलना नहीं चाहते। मन भटकने लगता है। कभी नदी तो कभी झील को देखता है और पानी की धार को एक तक देखता रहता है । उसमें तैरना चाहता है उसमें जाना चाहता है, उसमें मिलकर रहना चाहता है।
लोग कहते हैं तभी कुछ लिखा जा सकता है जब कोई किसी को चाहता हो , उसे प्यार करता हो ,उसे अपना बनाना चाहता हो । मेरे अनुसार ऐसी कोई बात नहीं है। ये तो मन में उठे विचार हें कुछ कल्पनाएँ हैं जो कुछ कह रहे हैं । जीवन का रास्ता बता रहे हैं। ये तुम्हें तुम्हारी मंजिल तक पुन्ह्चाना चाहते हैं। जहाँ तुम अपना सारा जीवन सारी दुनिया से अलग , इस जहाँ के लोगों की ज़िन्दगी बिताने के तरीके से हटकर , बिता सको। जहाँ तुम्हें चैन और सुकून मिले।
साहित्य में वो अनूठी चीज है की जब तुम्हारा दिल रोना चाहे तो इसे पढ़कर रोए और जब हँसना चाहे तो हँसे।
यही तो वो चीज है जो मनुष्य को आने वाले कल को पहले से महसूस करा देती है। मैंने इसे कैसे लिखना सीखा ये तो बता पाना बहुत मुश्किल है पर मैं इतना जरुर जानता हूँ की मन ने सोचा, दिल ने चाहा और कलम ने इस कीमती कागज़ पर लिख दिया।
अंत में, मैं यही कहूँगा की इसमें मैंने चैन सुकून और एक अजीब सी छुवन जो कुछ याद दिलाती है , पाया।
" नहीं है कुछ इस दुन्याए फानी में
बेकार है जीवन नहीं काम की ये ज़िन्दगी
जो है सब पल भर के लिए "
-Author
Mohd. Shahid Mansoori "Ajnabi"
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी" कोंचवी
- 23rd Apr. 1999
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