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Tuesday, April 15, 2014

कभी कितनी हलचलों से भरी थी ज़िन्दगी

कभी कितनी हलचलों से भरी थी ज़िन्दगी 
मगर आज कितनी खामोश है ज़िन्दगी 

न चैन है, न सुकून है, न करार है न प्यार है 
बस खिजां के फूल सी हो गयी है ज़िन्दगी 

कभी यारों की हंसी के दरमियाँ रहते थे हम 
अब तो साक़ी के पैमाने में कटती है ज़िन्दगी 

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
25th May. 04, '203'

Dedicated to my enemy.


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