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Wednesday, April 16, 2014

रोज- रोज न सही मेरे ख्वाबो- ख्यालो

रोज- रोज न सही मेरे ख्वाबो- ख्यालो
बस आज तुम मेरे दिल को बहलाओ

अपने दिल को यूँ  ही न रोने देना
जरा देर तक जो मेरी खबर न पाओ

जिस्म जिस्म मिलकर क्या करेगा
वस्ल की दिल में जो जगह न पाओ

मुहब्बत के साए में जरा ठहर जाना
गर रास्ते में कोई शजर न पाओ

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
14 th  June. ,02, '229'

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