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Tuesday, April 22, 2014

मैं दुश्मन से भी मिलूं

मैं दुश्मन से भी मिलूं
तो गले लग के मिलूं
एक वो अपने हैं  जो
कहते हैं -
मुझे जानने की जुरुरत क्या है  !!!

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
04th June., 2008, '265'

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