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Wednesday, April 09, 2014

तारीक राहें

तारीक राहें
अजनबी रास्ता
न हमसफ़र
न कोई साया
जब भी सोचा
तेरा ही चेहरा नज़र आया
चलते - चलते जब थक गया
खुद को तेरे साथ पाया
फिर भी न आई मंजिल नज़र
तन्हाईयों को हाले दिल सुनाया

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी "

28th Feb. 2002 , '142'

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