ज़िंदगी से लड़ा हूँ मैं
हालातों से जूझा हूँ मैं
फिर भी तेरा हूँ मैं
शबनम में भीगा हूँ मैं
माय में डूबा हूँ मैं
फिर भी तेरा हूँ मैं
तन्हाईयों के संग रहा हूँ मैं
परछाईयों के संग चला हूँ मैं
फिर भी तेरा हूँ मैं
सागर से गहरा हूँ मैं
फलक से ऊंचा हूँ मैं
फिर भी तेरा हूँ मैं
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
31st July, 2000, '114'
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