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Friday, July 27, 2012

ज़िंदगी से लड़ा हूँ मैं

ज़िंदगी से लड़ा हूँ मैं
हालातों से जूझा हूँ मैं
फिर भी तेरा हूँ मैं

शबनम में भीगा हूँ मैं
माय में डूबा हूँ मैं
फिर भी तेरा हूँ मैं

तन्हाईयों के संग रहा हूँ मैं
परछाईयों के संग चला हूँ मैं
फिर भी तेरा हूँ मैं

सागर से गहरा हूँ मैं
फलक से ऊंचा हूँ मैं
फिर भी तेरा हूँ मैं

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
31st July, 2000, '114'

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