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Wednesday, April 09, 2014

एक शायर

एक शायर 
और कई हवाएं 
दूर तक फैला सन्नाटा 
हर सू तन्हाईयों के मकाँ 
है ख़ामोशी उनमें बयां 
न कोई चरिंदा 
न कोई परिंदा 
बस एक चाँद
और चाँद में उसकी महबूबा 

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
16th Mar. 02, '146'

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