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Friday, April 11, 2014

गहरा और गहरा मरासिम

जहाँ तुम्हारी नज़र जाए 
बस ख़ुशी नज़र आये 
खुशियों का हो सामयाना
खुशियों की हों दीवारें
हो आहट ख़ुशी की जिसमें 

 तबस्सुम के हों फूल सिवाए गुलमोहर 
इक ऐसा ही हो तुम्हारा घर
जहां उम्र का ये साल गुजर जाए 

'अजनबी' की है ये मुसलसल दुआ 
तन्हा न रहे तुम्हारा सफ़र 
अर्सों रहे इस घर से तुम्हारा 
गहरा और गहरा मरासिम  !! 

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
2nd June ,02, '159'



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