मेरी डायरी
ये मेरी अपनी ज़िन्दगी का फ़साना है
जो कभी बयां ही न हो सका
- शाहिद अजनबी
20.07.09, '347'
( कानपुर में लिखा गया रोज़ी के साथ )
ये मेरी अपनी ज़िन्दगी का फ़साना है
जो कभी बयां ही न हो सका
- शाहिद अजनबी
20.07.09, '347'
( कानपुर में लिखा गया रोज़ी के साथ )
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