तजुर्बा
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Tuesday, May 06, 2014
मासूम सी आँखों में समन्दर से ख्वाब
मासूम सी आँखों में समन्दर से ख्वाब
साफ़ दिखाई देती है ये मुहब्बत की ताब
नहीं जुरूरत अब ज़िन्दगी को पढने की
बस खुली रहे ये ये इश्क़ की किताब
-
मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
1st Mar. 12, '284'
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