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Tuesday, May 06, 2014

ज़िन्दगी क्या-क्या रंग दिखाती है हमें

ज़िन्दगी क्या-क्या रंग दिखाती है हमें
वक़्त-बे- वक़्त रूबरू हकीक़त कराती है हमें

हम यूँ ही देखते रह जाते हैं
वो खुद-ब -खुद रास्ता दिखाती है हमें

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
23.02.10, '285'

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