ज़िन्दगी क्या-क्या रंग दिखाती है हमें
वक़्त-बे- वक़्त रूबरू हकीक़त कराती है हमें
हम यूँ ही देखते रह जाते हैं
वो खुद-ब -खुद रास्ता दिखाती है हमें
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
23.02.10, '285'
वक़्त-बे- वक़्त रूबरू हकीक़त कराती है हमें
हम यूँ ही देखते रह जाते हैं
वो खुद-ब -खुद रास्ता दिखाती है हमें
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
23.02.10, '285'
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