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Thursday, May 08, 2014

क्या कहूँ इस ज़िन्दगी को

क्या कहूँ इस ज़िन्दगी को
टिकी है जो , इक अंगूठे पे
सुबह होते ही, इल्म है अंगूठे से
जाना , बोलना , अपने अन्दर का उड़ेलना
उसे नाम दे दिया
सिम्पल सी बात है
लेक्चर है ये

चन्द हंसी के फव्वारे
बेवजह की ठिठोली
इसका फोन, उसका फोन
ये लेक्चर, वो लेक्चर
ये इंगेज, वो इंगेज

ऊपर से ये आवाजें
बच्चे तो नहीं घूम रहे हैं बाहर
क्या यही ज़िन्दगी है?

कम अज कम
ये तो नहीं है ज़िन्दगी

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
20.09.13 , '310'



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