तुझे मिली जालियां
मुझे मिली गालियाँ
गर यही मुहब्बत का अंजाम होना था
तो ये इश्क़
न होना ही बेहतर था
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
24th Sep. , 11, '291'
मुझे मिली गालियाँ
गर यही मुहब्बत का अंजाम होना था
तो ये इश्क़
न होना ही बेहतर था
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
24th Sep. , 11, '291'
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