तजुर्बा
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Thursday, May 08, 2014
ख़ुदा सब कुछ दे
ख़ुदा सब कुछ दे
ग़म-ए- मुहब्बत न दे
ज़िंदगी की रानाई दे
राहे उल्फत न दे
साथ हो के जो साथ न हो
ऐसी कोई सख़ावत
न दे
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शाहिद "अजनबी"
30.05.2012, '333'
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