तुमने तो प्यार किया था अपना समझकर
ठुकराया उसने तुम्हें इक अनजाना समझकर
इसे भाग्य का फैसला कहूँ
या किस्मत का खेल कहूँ
चाहता है जो रब होता है वही
मैं जो भी सोचूँ तुम जो भी कहो
था जो तुम्हारा अब हो गया पराया
उठ गया तुम्हारे सर से अब वो साया
होगा तुम्हें याद अब भी वो नज़ारा
खायीं थीं तुमने कसमें किये थे तुमने वादे
निकले सारे फरेब हो गए सारे झूठे
जीना तो पड़ता ही है दुनिया में
यादों के सहारे या दर्द के साथ
सीख लें वे ग़मों से प्यार और दर्दे जुदाई का सहना
यही है प्यार करने वालों से "अजनबी" का कहना
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
17th Aug., 1999, '55'
खूबसूरत भावमयी रचना
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