तोड़ दी तुमने सारी कसमें
तोड़ दिए जीवन के लाखों वादे
भरम भी अब न रहा
तुम गए तो गए मगर फिर भी
मैं ज़िन्दगी से बेखबर रहा
छोड़ दूँ दुनिया या दुनिया में रहूँ
रहूँ आखिर तो कहाँ रहूँ
तुम नहीं क़रीब, न ही मेरे आसपास
कहूँ अब अपना मैं किसको ख़ास
याद तुम्हें पल-पल सताएगी मेरी
जानता हूँ मैं, समझता हूँ मैं
पर हूँगा मैं, न जाने किसके बीच में
मन में ढूँढोगी, तलाश करोगी सपनों में
लेकिन तस्वीर जरुर होगी मेरी
तुम्हारे दिल के आईने में !!
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी'
3rd Aug., 1999, '51'
आप तो जिन्दगी से बेखबर रह कर भी जिन्दगी के बारे में इतना कुछ लिख दिया.... बेहतरीन रचना....
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