न तो हूँ मैं शायर
न ही हूँ मैं कवि
जो भी लिखता हूँ वो
अपने लिए- उसके लिए
अपनों के लिए और
अपने प्यारे मुल्क के लिए
जेहन में आता है
दिल से पूछता हूँ
क़लम से कह कर
काग़ज़ पर उतार देता हूँ
यही होती है मेरी कविता
यही होती है मेरी ग़ज़ल
यही होती है मेरी नज़्म
यही होती है है मन की पुकार
और मेरे दिल की जलन !!
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
12nd Aug, 1999, '54'
वाह सार्थक शब्द सार्थक सोच बहुत अच्छा लिखा है
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुक्रिया अक्षय जी
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