आँखों का नशा
होठों से पिला दे
छीन ले मेरा होशो हवास
कर दे मुझको पागल
कि बस
आँखों में हो तेरा चेहरा
दिल में हो तेरी तस्वीर
हो जाये मेरी ऐसी तकदीर
हों तेरी भावनाएं मेरे मन में
और मेरी भावनाएं तेरे मन में
ऐसा हो इक नया अहसास
कर सकूँ जिसे जी भर के प्यार
न मिले मुझे राहों में इक भी फूल
मिले चाहे सारे खार
लेकिन तुम
ऐसा ही करना मेरे जांनिसार !!
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
13rd July, 1999, '45'
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