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Saturday, May 31, 2014

आसमाँ पे छाई काली घटा बादल की

आसमाँ पे छाई काली घटा बादल की
घटा लायी कुछ बूँदें सावन की बरसात की

भीग गया दामन मेरा इस बरसात में
बह गए दिल के अरमां इस मनभावन बरसात में

मन भटका कुछ इधर उधर इस बरसात से
याद आये बीते लम्हे इस बरसात से

दिल हो गया बाग़ बाग़ उन गुजरी यादों से
हो गए दूर दिल के दुःख इन प्यारी यादों से

दिल में उठी फिर से कसक आज उनसे मिलने की
पर यकीं है हमें वो न मिलेंगे इस भीगे बरसात में

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी' 
09.05.99, '358'

इस ग़ज़ल को लिखने में महेंद्र का सहयोग रहा ...

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