तजुर्बा
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Thursday, May 08, 2014
मेरी खुशी
हाँ, थी
मुझे बेइंतिहा मुहब्बत
अपने नाम से
लगता था की मीठा सा
मगर अब
नफरत घुलने लगी है उसमें।
- शाहिद "अजनबी"
21.07.09, '343'
(कानपुर में लिखा गया रोज़ी के साथ)
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