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Thursday, May 08, 2014

दामने कलम है हाथ में



दामने कलम है हाथ में
कुछ अहसास हैं साथ में
शायद चंद दिलों को झिंझोड़ दे
जिसे लिखावट का नाम दूँ..

सो
लफ़्ज़ों को तोड़ता हूँ,
रदीफ़- काफिया जोड़ता हूँ
यूँ समझो दिल की उलझन को
काग़ज़ पे उतारता हूँ

कोई नज़्म कहता है,
कोई ग़ज़ल कहता है..
इसी कोशिश में लगे हुए
चंद साल गुज़र गए
कुछ और बरस बीत जाएँ...

बस खुदा से इतनी गुज़ारिश करता हूँ
कोशिशों से पैदा हुए मिसरे दिलों में रह जाएँ..

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी'
31.12.2012, '330'

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