दामने कलम है हाथ में
कुछ अहसास हैं साथ में
शायद चंद दिलों को झिंझोड़ दे
जिसे लिखावट का नाम दूँ..
शायद चंद दिलों को झिंझोड़ दे
जिसे लिखावट का नाम दूँ..
सो
लफ़्ज़ों को तोड़ता हूँ,
रदीफ़- काफिया जोड़ता हूँ
यूँ समझो दिल की उलझन को
काग़ज़ पे उतारता हूँ
कोई नज़्म कहता है,
कोई ग़ज़ल कहता है..
इसी कोशिश में लगे हुए
चंद साल गुज़र गए
कुछ और बरस बीत जाएँ...
बस खुदा से इतनी गुज़ारिश करता हूँ
कोशिशों से पैदा हुए मिसरे दिलों में रह जाएँ..
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी'
31.12.2012, '330'
No comments:
Post a Comment