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Thursday, May 08, 2014

हमारी दुनिया भी क्या दुनिया है

हमारी दुनिया भी क्या दुनिया है 
की हम अपनी आंखों के सामने 
अपनी दुनिया लुटते हुए देख रहे हैं। 
अजीब बात है 
तुम्हारा दिल भी 
कैसे गवारा करता है की 
तुम ख़ुद बखुशी         
अपनी ससुराल के लिए 
शोपिंग करो"

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी  'अजनबी', 
(कानपुर  में लिखा गया  रोज़ी के साथ ) 
20.07.09 , '342'










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