हमारी दुनिया भी क्या दुनिया है
की हम अपनी आंखों के सामने
अपनी दुनिया लुटते हुए देख रहे हैं।
अजीब बात है
तुम्हारा दिल भी
कैसे गवारा करता है की
तुम ख़ुद बखुशी
अपनी ससुराल के लिए
शोपिंग करो"
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी',
(कानपुर में लिखा गया रोज़ी के साथ )
20.07.09 , '342'
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की हम अपनी आंखों के सामने
अपनी दुनिया लुटते हुए देख रहे हैं।
अजीब बात है
तुम्हारा दिल भी
कैसे गवारा करता है की
तुम ख़ुद बखुशी
अपनी ससुराल के लिए
शोपिंग करो"
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी',
(कानपुर में लिखा गया रोज़ी के साथ )
20.07.09 , '342'
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