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Thursday, May 08, 2014

ज़िन्दगी भी कैसे मकाम




ज़िन्दगी भी कैसे मकाम तय करवाती है
इक ऐसा सफ़र जो तेरे शहर की दहलीज तक जाता है
देखिये, क़िस्मत का फेर देखिये
मुझे दरमियाने सफ़र उतरना होगा...

- शाहिद "अजनबी"
24.01.2014, '328'

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