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Wednesday, May 07, 2014

दर -ब -दर भटकते रहे

दर -ब -दर भटकते रहे
ज़िन्दगी के दिन यूँ ही कटते रहे

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी'
26th Jan. 12, '296'

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