Followers

Friday, June 18, 2010

इंतजार

था जिस घड़ी का इंतजार
लो वो घड़ी गयी
मगर साथ में कुछ पानी की बूँदें लाई
ये पानी की बूँदें नहीं , ये तो ख़ुशी के आंसू हैं
ख़ुशी इसी बात की, कि इनमें कुछ ग़म के आंसू हैं

ये आंसू सुना रहे हैं दर्दे मुहब्बत उसकी
जो घिरी हुई है मजबूरियों जैसे पहाड़ों से
मुश्किल है निकलना उसका इन दीवारों से

मगर मैंने कह रखा है उससे
यही तो लड़ना है ज़िन्दगी से
मुझे विश्वास ही नहीं पूरा भरोसा है
कि वो मेरा साथ निभाएगी

जब तक कि मैं रहूँगा इस दुनियां में "अजनबी' बनकर
वो मेरा साथ देगी निशा बनकर

मेरे लिए बग़ावत करेगी वो दुनिया से
लड़ेगी, संघर्ष करेगी और पा लेगी मुझे

ईश्वर करे आसां हों ये काँटों के रस्ते
नव वर्ष पर यही दुआ है 'उसके' लिए!!!

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी"अजनबी' कोंचवी
1st Jan , 1999, '5'

No comments:

Post a Comment