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Tuesday, June 29, 2010

फुरकत में हमसफ़र

हर किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
जो भी सोचो वो अक्सर नहीं मिलता

तुम खफा होने की बात करते हो
वो कभी नज़र भर नहीं मिलता

हिज्र की रातों में चांदनी ने साथ दिया
वरना फुरकत में हमसफ़र नहीं मिलता

मेरे दिल को थी जो कायनात मंजूर
दोनों आलम मिले वो मगर नहीं मिलता

-मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'191' 5th May, 2002

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