हर किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
जो भी सोचो वो अक्सर नहीं मिलता
तुम खफा होने की बात करते हो
वो कभी नज़र भर नहीं मिलता
हिज्र की रातों में चांदनी ने साथ दिया
वरना फुरकत में हमसफ़र नहीं मिलता
मेरे दिल को थी जो कायनात मंजूर
दोनों आलम मिले वो मगर नहीं मिलता
जो भी सोचो वो अक्सर नहीं मिलता
तुम खफा होने की बात करते हो
वो कभी नज़र भर नहीं मिलता
हिज्र की रातों में चांदनी ने साथ दिया
वरना फुरकत में हमसफ़र नहीं मिलता
मेरे दिल को थी जो कायनात मंजूर
दोनों आलम मिले वो मगर नहीं मिलता
-मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'191' 5th May, 2002
'191' 5th May, 2002
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