राहे उल्फत में काँटों के सिवा कुछ भी नहीं
दिल के आईने में ख्यालों के सिवा कुछ भी नहीं
दुनिया की नज़र में, मैं एक ऐतवार सही
मगर तेरे बिन मेरा भरम कुछ भी नहीं
हर इक क़तरे में तेरा अक्स जो न हो
साक़ी जाम सुराही और ख़म कुछ भी नहीं
-मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'165' 24th June 2002
दिल के आईने में ख्यालों के सिवा कुछ भी नहीं
दुनिया की नज़र में, मैं एक ऐतवार सही
मगर तेरे बिन मेरा भरम कुछ भी नहीं
हर इक क़तरे में तेरा अक्स जो न हो
साक़ी जाम सुराही और ख़म कुछ भी नहीं
-मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'165' 24th June 2002
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