Followers

Tuesday, June 29, 2010

राहे उल्फत

राहे उल्फत में काँटों के सिवा कुछ भी नहीं
दिल के आईने में ख्यालों के सिवा कुछ भी नहीं

दुनिया की नज़र में, मैं एक ऐतवार सही
मगर तेरे बिन मेरा भरम कुछ भी नहीं

हर इक क़तरे में तेरा अक्स जो हो
साक़ी जाम सुराही और ख़म कुछ भी नहीं

-मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'165' 24th June 2002


No comments:

Post a Comment