मेरे प्रिये मित्र नमन
रहे तुम्हारे पास हमेशा अमन
करते हैं तुमसे कई आशाएं
मेरे दिल में तुम्हारे लिए हैं कई भावनाएं
उनमें से एक
लक्ष्य है तुम्हारा जो
याद रहे हमेशा वो
क्योंकि
जीवन के इस चक्र में
कई गर्त हैं
तुम्हें गर्त नहीं
अपनी मंजिल को देखना है
पर मेरे यार इन सब भंवर में
न भूल जाना अपने
इस साथी को
जो साथ है तुम्हारे तब से
जबकि
शायद हम दोनों ने जीने का
सलीका सीखा था
बर्थडे पर तुम्हारे
साहित्य से हमारे
अर्पित हैं दो पंक्तियाँ
जो सामने हैं तुम्हारे!!!
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी" कोंचवी
23rd, Jan 1999, '4'
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