Followers

Tuesday, June 29, 2010

आँख नशीली बात शराबी

आँख नशीली बात शराबी, और बिखरी जुल्फें
ये उल्फत का निशाँ नहीं तो क्या है


साँसें बहकी, दिल झूमा, और बेवजह खनखनाहट
ये उल्फत का निशाँ नहीं तो क्या है

तसव्वुर में कोई सूरत और दिल में वो ही मूरत
ये उल्फत का निशाँ नहीं तो क्या है

अशआर नज़्म और उसके चारसू ग़ज़ल
ये उल्फत का निशाँ नहीं तो क्या है

कहकशां की रौशनी, तन्हाईयों की तिश्नगी और तुम
ये उल्फत का निशाँ नहीं तो क्या है

कसमें वादे आंसू तड़प और है बस "अजनबी"
ये उल्फत का निशाँ नहीं तो क्या है

-मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'151' 27th Mar. 2002

No comments:

Post a Comment