लानत है ऐसी ज़िन्दगी पर
जो हो न सका फ़िदा इस देश पर
मौका मिला सुहावना
जाँ देने का इस देश पर
जो हो न सका कुर्बां इस देश पर
मौका निकल गया
हाथ उसका खाली समझकर
उसने भी भुला दिया
उसे सपना समझकर
गर हो जाता वो
शहीद इस देश पर
याद किया जाता उसे उनमें
जिन्होंने सींचा है इसे अपने
लहू और पसीने से
याद आती है जब उनकी
तो ये आँख हो आती है नाम
मन में उनकी
आकृतियों को देखकर
शायद दुर्भाग्य था उसका
किसी तरह बदल गया था मस्तिष्क उसका!!!
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी"अजनबी"
23rd Apr, 1999, '3'
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