Followers

Monday, June 28, 2010

नात

हर क़तरा इश्के मुस्तफ़ा से लबरेज हो जाये
मैं रहूँ रहूँ ये दिल मुस्तफ़ा का हो जाये

दोनों आलम के ख़फा होने की तमन्ना नहीं
मगर मेरा हर सफा मुस्तफ़ा का हो जाए

ज़र्रा भर ज़र नहीं चाहिए मुझे या रब
मेरी सांस का हर हिस्सा मुस्तफ़ा का हो जाये

दुनिया में नाम कमाकर क्या करोगे "अजनबी"
या अल्लाह आखिरत में मुस्तफ़ा का साथ हो जाये

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'219' 20th June, 2005

No comments:

Post a Comment