हर क़तरा इश्के मुस्तफ़ा से लबरेज हो जाये
मैं रहूँ न रहूँ ये दिल मुस्तफ़ा का हो जाये
दोनों आलम के ख़फा होने की तमन्ना नहीं
मगर मेरा हर सफा मुस्तफ़ा का हो जाए
ज़र्रा भर ज़र नहीं चाहिए मुझे या रब
मेरी सांस का हर हिस्सा मुस्तफ़ा का हो जाये
दुनिया में नाम कमाकर क्या करोगे "अजनबी"
या अल्लाह आखिरत में मुस्तफ़ा का साथ हो जाये
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
'219' 20th June, 2005
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