Followers

Friday, June 18, 2010

समर्पण

तुम्हें क्या करूँ अर्पित
और क्या न करूँ समर्पित
जब हर सुबह, हर शाम
तुम्हारा है।

ये साँसों का बहकना, दिल का मचलना
तुम्हारा है।

मेरे पास रह ही क्या गया है
सिवाए उसके
मेरे पास नहीं है कुछ, उसके पास है सब कुछ
क्योंकि
जो नहीं है मेरे पास
वो है उसका खास
मेरी आशा है ऐसी
कि

मुझे प् के वो, प् लेगी
दुनिया कि सारी ख़ुशी
लेकिन जब मैं गौर करता हूँ, एक नज़र
अपने दिल के ऊपर
तो अहसास होता है
कि
मेरे पास ये कमसिन दिल
और ये पागल मन अब भी है
अब बता दे तू ही
कि
मैं तुझे क्या भेंट करूँ
क्या न करूँ?

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी" कोंचवी

14th Jan, 1999, '6'

No comments:

Post a Comment