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Tuesday, June 29, 2010

दायरा दोस्ती का

दायरा दोस्ती का और मुहब्बत की बातें
वो रोज कहते हैं कोई ग़ज़ल सुना दें

कैनवस पर तुमको उतरना तो है मुश्किल
कहो तो अल्फाजों में तुमको बना दें

रूठ जाने का सबब पूछे बिना ही
निगाहों में ही वो मुझको मना लें

मेरी ज़िन्दगी का सफा पलट के देखो
दस्ताने इश्क का नगमा सुना दें

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी'
'193' 27th Aug. 2002

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