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Thursday, November 24, 2011

यादों के संग रहकर मैं अपना दिन बिताता हूँ

यादों के संग रहकर मैं अपना दिन बिताता हूँ
ख्वाबों में तेरे संग रहकर मैं रात बिताता हूँ

वादे जो किये हैं तुमसे सनम
बस मैं उनको निभाता हूँ

हद से ज्यादा बढ़ जाती है जब तेरी याद
हथेली पे तेरा नाम लिख-लिख कर मिटाता हूँ

अपने तो दिल में लगी है मुहब्बत की आग
फिर भी अपने नगमे सुनाकर औरों का दिल बहलाता हूँ

ग़ज़ल लिखने से भी मिटती हैं कहीं यादें "अजनबी'
तड़पे हुए दिल को मैं और तड़पाता हूँ

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
26th June 2000, '95'

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