यादों के संग रहकर मैं अपना दिन बिताता हूँ
ख्वाबों में तेरे संग रहकर मैं रात बिताता हूँ
वादे जो किये हैं तुमसे ऐ सनम
बस मैं उनको निभाता हूँ
हद से ज्यादा बढ़ जाती है जब तेरी याद
हथेली पे तेरा नाम लिख-लिख कर मिटाता हूँ
अपने तो दिल में लगी है मुहब्बत की आग
फिर भी अपने नगमे सुनाकर औरों का दिल बहलाता हूँ
ग़ज़ल लिखने से भी मिटती हैं कहीं यादें "अजनबी'
तड़पे हुए दिल को मैं और तड़पाता हूँ
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
26th June 2000, '95'
very nice lines sir ....... gr8 ....
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