क्या सुनाऊं यारो तुम्हें ग़ज़ल
जब मेरी ग़ज़ल ही मेरे पास नहीं
है किसी का ये शायर
है उसी की ये शायरी
क्या सुनाऊं तुम्हें शायरी
जब मेरे पास नहीं मेरी शायरी
ग़ज़ल का हर मिसरा है उसके नाम
मिसरे का हर लफ्ज़ है उसके नाम
मगर अब उसका नाम है किसी और के नाम
अब क्या दिल बहलाऊं यारो तुम्हारा
जब मेरा दिल ही मेरे पास नहीं
क्या सुनाऊं यारो तुम्हें ग़ज़ल
जब मेरी ग़ज़ल ही मेरे पास नहीं
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
23rd June 2000, '93'
kya baat hai bhaai ajib drd hai yeh dil lgaana bhi .akhtar khan akela kota rajthan
ReplyDeleteSHUKRIYA SIR..
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