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Friday, November 18, 2011

ग़म की घटायें छटेंगीं

ग़म की घटायें छटेंगीं
खुशियों के बदल आयेंगे
ऐसे ही इक बरसात में
हम तुम भीग जायेंगे

उठेगी ऐसी इक लहर
गिरा देगी ग़मों देगी सारे शजर
खुशियों के इस दरिया में
हम तुम डूब जायेंगे

आयी है जो खिजां
तो बहारें भी आयेंगीं
इन्हीं बहारों के साए में
हम तुम छिप जायेंगे

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
21st June 2000, '92'

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