खुशियों के बदल आयेंगे
ऐसे ही इक बरसात में
हम तुम भीग जायेंगे
उठेगी ऐसी इक लहर
गिरा देगी ग़मों देगी सारे शजर
खुशियों के इस दरिया में
हम तुम डूब जायेंगे
गिरा देगी ग़मों देगी सारे शजर
खुशियों के इस दरिया में
हम तुम डूब जायेंगे
आयी है जो खिजां
तो बहारें भी आयेंगीं
इन्हीं बहारों के साए में
हम तुम छिप जायेंगे
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
21st June 2000, '92'
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