ऐ साक़ी इतनी पिला दे मुझे आज
बाकी और प्यास न रहे
भूल जाऊं सारी दुनिया
कोई और होश न रहे
कुछ ऐसा नशा आ जाये मुझे
किसी और का इंतज़ार न रहे
फूलों से भर जाये मेरी ज़िन्दगी
बस अब इक भी खार न रहे
चाह है जिसे तूने "अजनबी"
उसके पास कोई ग़म न रहे
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
1st June 2000, '81'
बहुत खूबसूरत एहसास
ReplyDeleteबहुत अच्छी भावाभिवय्क्ति.....
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