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Tuesday, November 15, 2011

आ गया फिर जुदाई का मौसम

जा चुकी है कब की खिजां
गया बहारों का मौसम
मेरे ग़म फिर भी नहीं गए
कि गया फिर जुदाई का मौसम

इज़हारे मुहब्बत हुआ ही था
दिल में तमन्नाएँ जगीं ही थीं
हुआ ही था ईजाद ख्वाबों का मौसम
कि गया फिर जुदाई का मौसम

मिले ही थे दो दिल
धड़कना अभी बाकी ही था
छाया ही था प्यार का मौसम
कि गया फिर जुदाई का मौसम

चोरी कि मुहब्बत को चाहा था छिपाना
बाकी था अभी उनका मेरे वादों को निभाना
छा गया ज़माने की दुस्वारी का मौसम
कि गया फिर जुदाई का मौसम

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
23rd Apr. 2000, '89'

2 comments:

  1. हम वफ़ा से इस तरह कुछ बेवफ़ाई कर गए-
    ज़िंदगी बीमार जब होने लगी हम मर गए

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  2. छा गया ज़माने की दुस्वारी का मौसम
    कि आ गया फिर जुदाई का मौसम
    यही दुख की बात है :)

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