आज कहा सो कहा
अब कभी मत कहना
कि
मैं तुम्हें भूल जाऊं
मैंने तुमसे इज़हार किया है
मैंने तुमसे प्यार किया है
मेरी ज़िन्दगी से बढ़कर हो तुम
मेरी रूह से बढ़कर हो तुम
ख़ुशी में हो तुम
ग़म में हो तुम
हलचल में हो तुम
तन्हाई में हो तुम
तुम्हीं कहो
कैसे भुला दूं तुम्हें
कैसे रुला दूं तुम्हें
तन्हा रातों में तुम्हारा वो
मेरे पास आना
आके फिर तेरा वो
मेरी हथेली को चूमना
कैसे भुला दूं वो लम्हात
लहू से तेरी मांग को सजाना
सजाकर,
मुहब्बत कि कसमें खाना
कैसे भुला दूं, कैसे भुला दूं?
मैं नहीं भुला सकता !
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
22nd June, 2000, '94'
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