लाख मुझे भुलाने की कोशिश करलो
पर मुझे पल भर न भुला पाओगी
जब भी आईने में खुद को निहारोगी
अक्सर मुझे और मुझे ही पाओगी
शाम की तन्हाई में होगी जब तन्हा
अपने को मेरे ख्यालों के रूबरू पाओगी
मुश्किल में होगा जब तुम्हारा दिल
मेरे नग़मों से अपना दिल बहलाओगी
रोक सको रोको ख्वाबों में मुझे
तन्हा रातों में "अजनबी" को जुरूर पाओगी
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
7th June 2000, '87'
kya gzab bhrosoa hai bhaai..akhtar khan akela kota rajsthan
ReplyDeleteबेहतरीन!!
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट पढ़कर याद आया वो कहते है न कि, "वो आदत ही क्या जो बादल जाये" और "वो प्यार ही क्या भुलाया दिया जाये"
ReplyDeleteबहतरीन प्रस्तुति
समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.com/