ज़िन्दगी तू बड़ी बेवफा है
इक न इक दिन मुझे छोड़ देगी
अरमां हमारे कफ़न ओढ़ लेंगे
तमन्नाएँ भी दिल में न रहेंगी
वो घड़ी कितनी बदनसीब होगी
दिल रोयेगा और अश्कों की झड़ी होगी
आने जाने की हलचल सी मची होगी
चाहेंगे लिपट के रो लें किसी से हम
उस वक़्त अपनों की कमी होगी
क्यों कल के ताने बाने बुनता है "अजनबी"
वो घड़ी भी अपनी हमसफ़र होगी
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
12nd Dec. 1999, '85'
No comments:
Post a Comment