तेरी न समझकर अपने दिल को समझा लिया मैंने
तेरे दिल को समझे बिना ही अपने दिल को समझा लिया मैंने
मेरे दिल के चमन में मुहब्बत के गुल खिले तो थे
मगर खिलने से पहले ही उनको मुरझा लिया मैंने
उल्फत की राहों पे चाहा था चलना तो हमने
मगर चलने से पहले ही क़दमों को हटा लिया मैंने
सोचा था तेरे दिल की दुनिया में इक आशियाँ बनायेंगे
अब तो तन्हाईयों में घर बसा लिया मैंने
मेरी मुहब्बत का अहसास हो या न हो उनको "अजनबी"
मगर अपने दिल को अहसास करा लिया मैंने
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
17th Jan. 2001, '131'
तेरे दिल को समझे बिना ही अपने दिल को समझा लिया मैंने
मेरे दिल के चमन में मुहब्बत के गुल खिले तो थे
मगर खिलने से पहले ही उनको मुरझा लिया मैंने
उल्फत की राहों पे चाहा था चलना तो हमने
मगर चलने से पहले ही क़दमों को हटा लिया मैंने
सोचा था तेरे दिल की दुनिया में इक आशियाँ बनायेंगे
अब तो तन्हाईयों में घर बसा लिया मैंने
मेरी मुहब्बत का अहसास हो या न हो उनको "अजनबी"
मगर अपने दिल को अहसास करा लिया मैंने
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
17th Jan. 2001, '131'
Shaandar Gazal.
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कितनी बदल रही है हिन्दी !
बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
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