इक न इक दिन मरना पड़ेगा
इस प्यार की खातिर
चलो आज पल भर में सदियाँ जी लें
इक पल में ज़िन्दगी का प्यार कर लें
आये न आये दोबारा ये दिन
मिले न मिले ये खुशियों के पल
चलो आज जी भर के प्यार कर लें
इक पल में ज़िन्दगी का प्यार कर लें
दुनिया देखे तो देखती राहे
हालात रोकें तो रोकते रहें
चलो आज रस्मे मुहब्बत जोड़ लें
इक पल में ज़िन्दगी का प्यार कर लें
सितारे होंगे अपने प्यार के शाहिद
चाँद होगा अपने प्यार का साया
चलो आज इक दूसरे को जी भर के देख लें
इक पल में ज़िन्दगी का प्यार कर लें
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
29th Oct. 1999, '121'
बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
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