आज रात भर वो जागते रहे
मेरा नाम लिखते और मिटाते रहे
कहते हैं नहीं है प्यार मुझसे
फिर क्यूं ख़्वाबों में आते जाते रहे
मेरा तसव्वुर भुलाने के लिए
मेरे ही नगमे गुनगुनाते रहे
सरे आईना हुए जो गेसू संवारने
तो खुद को मुझसे छिपाते रहे
मेरा छूटा संग जो उनसे
गुजरे वक़्त को बुलाते रहे
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
17th Jan. 2001, '133'
No comments:
Post a Comment