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Wednesday, August 15, 2012

गुजरे वक़्त को बुलाते रहे

आज रात भर वो जागते रहे
मेरा नाम लिखते और मिटाते रहे

कहते हैं नहीं है प्यार मुझसे
फिर क्यूं ख़्वाबों में आते जाते रहे

मेरा तसव्वुर भुलाने के लिए
मेरे ही नगमे गुनगुनाते रहे

सरे आईना हुए जो गेसू संवारने
तो खुद को मुझसे छिपाते रहे

मेरा छूटा संग जो उनसे
गुजरे वक़्त को बुलाते रहे

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
17th Jan. 2001, '133'

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