तजुर्बा
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Tuesday, August 14, 2012
इक और शमा जल गयी
मैं कह सकता नहीं
आप समझ सकते नहीं
मुहब्बत के शहर में
इक और शमा जल गयी
मगर अब इसे कोई
बुझा सकता नहीं
मुहब्बत से जोड़ा है जो नाता
तो दामन चुरा सकता नहीं
जाँ लुटा सकता हूँ मगर
क़दम हटा सकता नहीं
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
19th Nov. 2000, '132'
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