वो दग़ा देते रहे दोस्ती के नाम पर
हम ज़हर पीते रहे दवा के नाम पर
इस सियासत में भला कौन किसका है
वो जीते रहे दूसरों के नाम पर
इस ज़माने को मुहब्बत पे कहाँ ऐतवार है
सो दीवानों का क़त्ल करते रहे इश्क़ के नाम पर
रहनुमा बन के बैठे हैं मुल्क के जो आज
लोगों को लूटते रहे इंसानियत के नाम पर
रखनी है जिंदा मुहब्बत दुनिया में गर "अजनबी"
खुद को फ़ना कर डालो मुहब्बत के नाम पर
-मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
7th Feb. 2001 '136'
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