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Thursday, August 09, 2012

चहल कदमी करते हुए

चहल कदमी करते हुए
वो पगडंडियों पर चलना
फिर वो बातों का सिलसिला
कभी हमारा कभी तुम्हारा

कभी प्यार की बातें
कभी इज़हार की बातें
कभी बचपन की यादें
कभी रब से फरियादें

इक पल में यहाँ जाना
इक पल में वहां जाना
हँसते-हँसते चले जाना
आपस में फिर वो रूठ जाना

काश आ जाएँ वापस वो दिन
उछल कूद से भर जाएँ दिन
दूर हो जाये सारी उदासी
खुशियों में डूब जाएँ अपने दिन

- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
16th Aug. 2000, '127'

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