चहल कदमी करते हुए
वो पगडंडियों पर चलना
फिर वो बातों का सिलसिला
कभी हमारा कभी तुम्हारा
कभी प्यार की बातें
कभी इज़हार की बातें
कभी बचपन की यादें
कभी रब से फरियादें
इक पल में यहाँ जाना
इक पल में वहां जाना
हँसते-हँसते चले जाना
आपस में फिर वो रूठ जाना
काश आ जाएँ वापस वो दिन
उछल कूद से भर जाएँ दिन
दूर हो जाये सारी उदासी
खुशियों में डूब जाएँ अपने दिन
- मुहम्मद शाहिद मंसूरी "अजनबी"
16th Aug. 2000, '127'
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